Maha Kumb Mela Dates – प्रयागराज कुम्भ मेला स्नान तिथियाँ

Maha Kumb Mela Dates – प्रयागराज कुम्भ मेला स्नान तिथियाँ

(Maha Kumb Mela) कुम्‍भ मेला धार्मिक-आध्यात्मिक अनुष्ठानों का एक भव्य आयोजन है, जिसमें संगम-स्नान उन सभी अनुष्ठानों में सबसे महत्त्वपूर्ण है। त्रिवेणी संगम पर, लाखों तीर्थयात्री इस पवित्र कार्य में भाग लेने के लिए एक साथ आते हैं। उनको यह दृढ़ विश्‍वास है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से व्‍यक्ति सभी पापों से मुक्‍त हो जाता है तथा अपने साथ अपने पूर्वजों को पुनर्जन्‍म के चक्र से छुटकारा दिलाकर अंततः मोक्ष, या आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

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संगम-स्नान के अलावा, तीर्थयात्री पवित्र नदी के किनारे पूजा में भी शामिल होते हैं और विभिन्न साधुओं और संतों के मार्गदर्शन में ज्ञानवर्धक प्रवचनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। (Maha Kumb Mela)  कुम्भ मेला, मकर संक्रांति (जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है) के शुभ अवसर अथवा पौष पूर्णिमा से प्रारम्भ होता है। कुम्‍भ मेला की सम्पूर्ण अवधि के दौरान पवित्र जल में स्नान करना पवित्र माना जाता है, किन्तु कुछ विशिष्ट तिथियाँ हैं, जो विशेष महत्त्व रखती हैं। इन तिथियों पर विभिन्न अखाड़ों के संत अपने शिष्यों के साथ भव्य जुलूस निकालते है। वे एक भव्य अनुष्ठान में भाग लेते हैं, जिसे ‘शाही स्नान’ भी कहा जाता है, जो कुम्‍भ मेले के शुभारम्भ का प्रतीक है। शाही स्नान कुम्‍भ मेले का मुख्य आकर्षण है, जिसके लिए विशेष प्रबन्‍ध किये जाते हैं। शाही स्नान के अवसर पर लोगों को शाही स्नान करने वाले साधु-संतो के पुण्य कर्मों एवं और गहन-ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

Maha Kumb Mela mela 2025 – कुम्भ मेला स्नान तिथियाँ

पौष पूर्णिमा (13 January)

हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को पौष पूर्णिमा पड़ती है। यह पौष मास की शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि का नाम है। इस दिन पूर्ण चंद्र दिखाई देता है इसलिए पूर्णिमा की पवित्र तिथि होती है। इस दिन सूर्य एवं चंद्र की पूजा एवं आराधना तथा गंगा में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐसा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। पौष पूर्णिमा से ही कल्पवास का प्रारम्भ होता है। इस दिन कल्पवास का संकल्प लिया जाता है, जो माघी पूर्णिमा तक एक महीने की कठिन आध्यात्मिक तप तथा श्रद्धा को प्रदर्शित करता है।

 

मकर संक्रांति (14 January)

हिंदू पंचांग के अनुसार जब भगवान सूर्य धनु राशि का भ्रमण पूरा करके मकर राशि में प्रवेश करते हैं उस काल को मकर संक्रांति कहा जाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण होते है तथा दिन बड़े होने लगते हैं। यह मान्यता है कि इस दिन पवित्र जल में स्नान करने, पूजा-पाठ, यज्ञ तथा तिल, घी, गुड़ और खिचड़ी का दान-दक्षिणा देने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

 

मौनी अमावस्या (29 January)

मौनी अमावस्या का विशेष धार्मिक महत्त्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के लिए ग्रहों की स्थिति सर्वथा अनुकूल होती है। यह तिथि एक पवित्र घटना का स्मरण कराती है जब आदि ऋषि भगवान ऋषभदेव ने अपनी मौन रहने की शपथ को तोड़कर संगम के पवित्र जल में स्वयं को लीन कर लिया था। तीर्थ यात्रियों की विशाल मंडली मौनी अमावस्या के दिन कुम्भ मेले में आती है और इस दिन को आध्यात्मिक शक्ति तथा शुद्धीकरण का महत्त्वपूर्ण दिन बनाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मौन व्रत का पालन करते हुए जो व्यक्ति उपासना करता है वह सभी प्रकार के भौतिक सुखों को पाकर अंत में मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

वसन्त पञ्चमी (3 February)

माघ मास की शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को वसन्त पञ्चमी के नाम से जाना जाता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार वसन्त पञ्चमी ऋतुओं में परिवर्तन तथा ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी भगवती सरस्वती के आविर्भाव के उत्सव का प्रतीक है। इस पवित्र उत्सव को मनाने के लिए कल्पवासी पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं। इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान तथा पूजन का विशेष महत्त्व है।

 

माघी पूर्णिमा (12 February)

माघी पूर्णिमा को माघ मास का अंतिम दिन माना जाता है। इस दिन पवित्र जल में स्नान तथा वस्त्र और गोदान दैहिक तथा दैविक सभी कष्टों का निवारण करता है। माना जाता है कि माघ पूर्णिमा के दिन देवतागण पृथ्वी लोक में भ्रमण के लिए आते हैं। माघी पूर्णिमा कल्पवास की पूर्णता का पर्व है। एक मास की तपस्या एवं साधना इस तिथि को पूर्णता को प्राप्त होती है।

 

महाशिवरात्रि (26 February)

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी महाशिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है क्योंकि पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव का पार्वती जी से विवाह संपन्न हुआ था। यह कुम्भ का अन्तिम स्नान पर्व है। इस दिन पवित्र जल में स्नान करने के पश्चात् बिल्वपत्र, धतूरा, आक के फूल, चंदन, अक्षत, ईख की गँडेरियों सुगंधित द्रव्य, मधु, नवनीत, दूध तथा गंगाजल द्वारा शिवलिंग की पूजा एवं अभिषेक करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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